Thursday, October 17, 2013

मप्र की चार यात्राओं के दौरान विद्यार्थी से पूर्ण नेता बन गए राहुल


28 अप्रैल 2008
अपनी पहली मप्र यात्रा के दौरान राहुल गांधी इटारसी के आबादीपुरा में प्रमिला कुमरे के घर पहुंचे थे और मैदानी तथ्यों से अवगत होने ग्रामीणों से चर्चा की थी। उन्होंने इस कार्यक्रम से कांग्रेस नेताओं को पूरी तरह अलग रखा था। आलम यह था कि आबादीपुरा में कांग्रेस की तारीफ सुन वे इस पूर्व नियोजित बता कर नाराज हो गए और बिना खाना खाए रेस्ट हाऊस लौट गए। अगले दिन झाबुआ जिले के रायपुरिया में एनजीओ ‘संपर्क’ पहुंचे और वहां दो घंटे से ज्यादा का वक्त बिताया। कांग्रेस नेताओं को यहां भी दूर रखा गया।
6  अक्टूबर 2010
राहुल फिर भोपाल आए। यहां उन्होंने रवींद्र भवन में कॉलेज के विद्यार्थियों से चर्चा कर राजनीति में आने का आह्वान किया। यहां राहुल ने उच्च शिक्षा ले रही युवतियों से पहली बार अलग सत्र में बात की और राजनीति में आने की सलाह दी। इस कार्यक्रम में भी कांग्रेस नेताओं को मोटे तौर पर दूर रखा गया।
25 अप्रैल 2013
इस बार राहुल प्रदेश कांग्रेस की दो दिन की कार्यशाला में शामिल होने पहुंचे। राहुल ने बड़े नेताओं के कब्जे से कांग्रेस को बाहर निकालने की बात करते हुए कहा-‘जैसा कि मुझे लगता है, कांग्रेस न तो राहुल गांधी की है और न ही आप लोगों की है। यह पूरे हिन्दुस्तान की पार्टी है, जो आजादी के संघर्ष से तपकर बनी है।’ साफ है, राहुल भविष्य की अपनी राजनीति का उद्घोष कर रहे थे।
17 अक्टूबर 2013
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल इस प्रवास में चुनावी सभाओं को संबोधित करेंगे और भाजपा सरकार के परिवर्तन के लिए पूर्ण राजनेता के रूप में हुंकार भरेंगे।

राहुल गांधी की मप्र की ये चार यात्राएं राजनीति के एक विद्यार्थी के सुघड़ राजनेता में तब्दील होने की समानांतर यात्राएं हैं। पहली यात्रा में वे भारतीय राजनीति और कांग्रेस का चरित्र समझने के लिए निकले थे। राजनीति की इस बारहखड़ी को पढ़ते समय विद्यार्थी राहुल ने वरिष्ठ नेताओं की उंगली नहीं पकड़ी बल्कि खुद इबारत पढ़ने-समझने की कोशिश की। दूसरी बार वे आए तो युवाओं से मिले और उनके बीच अपना राजनीतिक एजेंडा रखा। यहां वे युवाओं के बीच ‘फ्यूचर लीडर’ के रूप में दिखाई दिए। तीसरी यात्रा में राहुल ने परिपक्व होते नेता के रूप दिखलाए। उन्होंने वरिष्ठ नेताओं को खरी-खरी सुनाई तो कार्यकर्ताओं के मन की बात को अपनी आवाज दी। कार्यकर्ताओं को लगा कि वे ‘कठपुतली नेता’ नहीं, अपनी स्वतंत्र राय रखने वाले कांग्रेस के कर्ताधर्ता से मुखातिब हैं। अब इस चौथी यात्रा में राहुल का रूप पूरी तरह एक राजनेता का जो है जो शिवराज सरकार को आरोपों के कठघरे में खड़ा कर रहा है और कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए अपना ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेल रहा है।

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