हमें गर्व होता है कि राज्य सरकार ने मप्र को विकास की
पटरी पर दौड़ाने के सारे जतन किए है। इसी का परिणाम है कि बीते नौ सालों में हमारा
सकल राज्य घरेलू उत्पाद 5.3 से बढ़ कर 11.1 प्रतिशत हो गया। कृषि और संबंधित क्षेत्र की विकास दर 7 से बढ़ कर 23.3 प्रतिशत हो गई। प्रति
व्यक्ति आय भी 3.1 से बढ़ कर 9.6 प्रतिशत हुई। लेकिन, साहब, विकास की इस गाथा का एक दूसरा चेहरा भी है।
यह चेहरा इस उजली इबारत से अधिक स्याह और निराशाजनक है। तथ्य बताते हैं कि मप्र
में नवजात मृत्यु दर 54 है जबकि देश में यह दर 40 है। प्रदेश में मातृ मृत्यु दर
221 है जबकि राष्ट्रीय औसत 167 है। प्रदेश में 3 साल से कम उम्र के 57.9 बच्चे
कुपोषित हैं। देश में यह संख्या 40.4 प्रतिशत ही है। प्रदेश की विकास की रोशनी को
झुठलाती ये तस्वीर इसलिए है क्योंकि सामाजिक क्षेत्र में प्रदेश सरकार की प्रमुख
नीतियां अपना लक्ष्य पाने में चूक गई हैं।
आपको याद होगा सन् 2000 में भारत सहित 189 देशों ने वादा
किया था कि वे अपने निवासियों को गरीबी से मुक्ति दिलाएंगे। उन्हें बेहतर शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वच्छता
और पेयजल का हक देंगे। इस आशय के आठ संकल्प सहस्राब्दी विकास लक्ष्य यानी मिलेनियम
डेवलपमेंट गोल के रूप में जाने गए। तय किया गया था कि 2015 तक इन लक्ष्यों को पा
लिया जाएगा। लेकिन यूनिसेफ और एनपीएफपी की मप्र राज्य एमडीजी रिपोर्ट 2014-15
बताती है कि मप्र अपनी जनता को गरीबी, अशिक्षा, खराब स्वास्थ्य स्थिति, महिलाओें के लिए प्रतिकूल
वातावरण को दूर करने के अपने वादे से चूक गया। खास बात यह है कि राज्यों के लिए
ये लक्ष्य यहां की सरकार ने ही तय किए थे, लेकिन सरकार के
पास ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है जिसके द्वारा वह अपनी नीतियों की सफलता और
उपलब्धियों का आकलन कर सके।
आर्थिक तरक्की का विरोधाभास
वर्ष 2013-14 में मप्र की सकल राज्य घरेलू उत्पाद वृद्धि
दर 11.1 प्रतिशत थी। यह देश में सबसे अधिक वृद्धि में से एक है लेकिन जहां देश में
गरीबों की संख्या में 1993-94 से 2011-12 के बीच 23.4 प्रतिशत की गिरावट हुई वहीं
मप्र में यह दर मात्र 13 प्रतिशत रही। सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों में भी ऐसा ही
हुआ। यह मप्र की तरक्की की गाथा का विरोधाभास है।
ये करें उपाय
रिपोर्ट में सुझाया गया है कि इस अंतर को कम करने के लिए
राज्य को अपने सामाजिक क्षेत्र का बजट कम से कम 30 प्रतिशत तक बढ़ाना होगा। 12
जिलों में इस बजट को कम से कम दोगुना करना होगा, ताकि एमडीजी लक्ष्यों को हासिल किया जा सके। ये जिले हैं – डिंडोरी,
सीधी, सिंगरौली, पन्ना,
उमरिया, सतना, शहडोल,
आलीराजपुर, अनूपपुर, दमोह,
श्योपुर और मंडला।
क्या कहती है रिपोर्ट
भूख और गरीबी का खात्मा
मप्र में गरीबी में तो गिरावट आई है लेकिन हम एमडीजी लक्ष्य
पाने में पीछे ही रहे। गरीबी रेखा के आंकड़े बताते हैं गरीबों में कुछ तो बहुत
गरीब हैं। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की स्थिति में सुधार के लिए बेहतर
नीतियों की आवश्यकता है। पोषण में सुधार के मामले में एमडीजी लक्ष्य और 2015-16
की आकलित उपलब्धि में 13 फीसदी का अंतर है। मप्र ने अपने विकास के लिए कृषि और
इससे जुड़े क्षेत्र में सार्वजनिक वितरण के सहयोग वाली वृद्धि उन्मुख रणनीति का
चयन किया है। कृषि आधारित विकास और मनरेगा गरीबी खत्म करने की प्रमुख रणनीति है।
बच्चों में कुपोषण खत्म करने में नीतियां असफल हुई हैं।
सभी को प्राथमिक शिक्षा
एमडीजी 2 में तय किया गया था कि 6-14 वर्ष तक के सभी बच्चों
को शिक्षा का हक दिया जाएगा। मप्र इस आसान लक्ष्य को भी प्राप्त नहीं कर सका है।
नेट नामांकन 95 प्रतिशत के शीर्ष को छू कर कुछ गिर गया। मप्र में बच्चों के स्कूल
में बने रहने की दर 75 फीसदी से अधिक नहीं हो सकी। यह दर बच्चों की स्कूल में
बने रहने की स्थिति को इंगित करती है। 15 से 24 साल के युवाओं में साक्ष्ारता दर
बहुत कम गति से आगे बढ़ी। इन आंकड़ों को देखते हुए साफ था कि मप्र 100 फीसदी साक्षरता
के लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता था। मप्र में शिक्षकों की भारी कमी और असंतुलित
वितरण के कारण मप्र में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार संभव नहीं हुआ।
लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण
2007-08 में जेंडर बजट लागू करने वाला मप्र देश का पहला
राज्य है। तब से लेकर अब तक केवल इतना हुआ कि 2013-14 तक जेंडर बजट बनाने वाले
विभागों की संख्या 13 से बढ़ कर 25 हुई लेकिन इस तरक्की के सिवाय बाकी सभी
क्षेत्रों में मप्र पिछड़ा ही है। जैसे, बाल लिंगानुपात, प्राथमिक और माध्यमिक कक्षाओं में
लिंग समानता सूचकांक, गैर कृषि क्षेत्रों में महिला
कर्मचारियों की संख्या इस दौरान घटी ही है। राज्य में जेंडर बजट की निगरानी के
लिए प्रभावी तंत्र का भी अभाव है।
बाल मृत्यु दर में कमी
बाल मृत्यु दर में कमी लाने के लक्ष्य के सारे संकेतकों
में मप्र पीछे ही दिखाई दे रहा है। पांच वर्ष से कम उम्र की मृत्यु दर और नवजात
मृत्यु दर में गिरावट हुई है, लेकिन
गिरावट की दर काफी कम है। इन दोनों ही संकेतकों में प्रदर्शन देखें तो विशेष ध्यान
देने वाले राज्यों में मप्र दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन करने वाला राज्य है।
2012-13 के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश की बाल मृत्यु में से 10.5 प्रतिशत बाल मृत्यु मप्र में होती है। पांच वर्ष से कम उम्र की मृत्यु
दर तथा नवजात मृत्यु दर का लैंगिक व क्षेत्रीय विश्लेषण बताता है कि मप्र के
ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की तुलना में बालिका मृत्यु दर अधिक है।
पर्यावरण सुधार
मप्र में वनों का प्रतिशत घटा है हालांकि पिछले कुछ वर्षों
में स्थितियां सुधरी हैं। कई योजनाओं के बाद भी मप्र में ठोस ईंधन जैसे कोयले और
लकड़ी का उपयोग करने वाले परिवारों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से अधिक है। परिसर
में जलस्रोत और नल जल पाने वाले परिवारों का प्रतिशत 2001 से 2011 की अवधि में घटा
है। 2015 में भी प्रदेश में करीब 70 प्रतिशत परिवारों को उपयुक्त स्वच्छता
सुविधा उपलब्ध नहीं है। देश के शहरी क्षेत्रों में झुग्गियों की संख्या घट रही
है जबकि मप्र में बढ़ रही है।
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